वक़्त हर एक गुज़र गया
वक़्त हर एक गुज़र गया,
मैं चट्टानों सा खड़ा रहा
आंधी तूफानों के निशां हैं मुझपे भी
टकराती हवाओं ने घिसा मुझे भी है
मैंने भी देखें हैं ढहते हुए टीले
उखड़ते पेड़ और उजड़ते हुए घोसले
शायद देख उन्हें ही मैं डटा रहा
सर्दी, सावन, गर्मी, बारिश और पतझड़ सा
दर्द, खुमारी, इश्क़, बेकरारी और ग़म
आया और गया
वसंत जैसे ही खुशनुमा पल जल्द बीत गए
और सर्द रातें काटें ना कटीं
फिर एक साल मैंने ठिठोली की सर्द हवाओं से
बारिशों संग गीत गाये
और राग मिलाये पतझड़ से
तब से हर मौसम ख़ुशनुमा बन गया
मैं वसंत में खिल उठता हूँ आज भी
पर अब सर्दी में कर्राहता नहीं
ना बारिश से बचता हूँ
और ना गर्मी से खीजता
मैंने हर मौसम से दोस्ती कर ली है
और सबने खूब प्यार भी दिया
ये जो चट्टानों सा मैं हूँ खड़ा
मेहनत कर कर इन्होंने ही मुझे है गढ़ा ॥
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