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ओ दुनिया के दिशा निर्देशक

जब दादा दिल्ली आये थे मंजन की पोटली लाये थे सड़क पे तब लोग कम थे और वक़्त ज्यादा आज वक़्त कम है और लोग ज्यादा तब दिल्ली में गांव के ख्वाब पनपते थे आज वहाँ कूड़े का पहाड़ है, बदबू बेशुमार है उपर मंडराते चील कववे खोजे जूठा खाना  निचे नन्हे बच्चों ने कूड़ा कुरेदने को जीवन जाना अमरीका में ट्रक आता है, कूड़ा ले जाता है एक हमारा हिंदुस्तान है, कुड़ी का ढेर गली का निशान है वहाँ से बाएं मुड़ जाना सामने ही मेरा मकान है  पर हमारी कुड़ी जाड़े के बाद खाद हो जाएगी इतने में अमेरिका की प्लास्टिक की ढ़ेरी दुगनी हो जाएगी और वो भेजेंगे हमें जहाज लाद कर टूटे थर्मामीटर, कांच के टुकड़े और प्लास्टिक का ढेर और हम डॉलर में खरीदेंगे भी भई आपके कूड़े का ठेका हमने ही तो लिया है कोई पुराना वीमान, युद्धपोत हो तो वो भी भेज देना डॉलर बहुत हैँ हमारे पास, पर ये सब बनाने का मूड नहीं है हिंदुस्तान आराम में है | तुम्हारा एक बाशिंदा हमारे एक परिवार से ज्यादा बर्बाद करे और दुनिया के बने आप दिशा निर्देशक, भैय्या कैसा गज़ब संवाद करे अरे मियां क्यों कितना खाते हो, क्यों इतना सड़ाते हो और मज़े की बात ये के हिंदुस्तान को ही ड...

एक नया पाकिस्तान मत मांगो

तुम मुझसे मेरा हर समान मांगो  मेरे तन का कपड़ा, मेरे हाथ की रोटी  मेरी रगो का खून, मेरे सर की छत्त  मेरी ज़मीन, मेरा आसमान मांगो  और जो भी हो ख्वाहिशें, वो सब मांगो  पर मत मांगो मुझसे हिस्सेदारी नफरत में  मेरी रूह हो जाये लहू-लुहान वो ज़बान मत मांगो  मैं टूट के, बिखर के;  उठ जाऊँ कंधो पे तुम्हारे  ऐसा उफान मत मांगो  मुझसे मेरा  जहान  ले लो  पर किसी मासूम की जान मत मांगो  मुझसे मेरा हिंदुस्तान ले लो  पर फिर से एक नया पाकिस्तान मत मांगो

फिज़ूल शायरी

__________ __________ __________ __________ आज जोश की नयी लहर उठ रही है  लगता है ज़िन्दगी मेरे इशारो पे चल रही है  हवा के घोड़ो पे दौड़ते मेरे दिन  और पहली बार लगता है लगाम भी मेरी है  ये तेरे होने की वजह से है या कुछ और  पर जो भी है, आज मेरी बेफिक्री का नशा ही अलग है  __________ __________ __________ __________ सब कुछ वैसा ही है,  फिर भी कुछ कमी सी है लोग वही शहर वही, फिर भी ये शाम उदास है; थमी सी है  पर एक तस्सली है इस शाम में  के दूर उस शहर में सुबह ख़ुशनुमा होगी  ये शाम मेरी हुई पर वो सुबह, वो सुबह तेरी होगी  __________ __________ ______ ____ __________ अब वक़्त बिछड़ने का था, सोचा चंद बातें करें  फिर सोचा चलो जाने दो क्यों लफ्ज़ ज़ाया करें  तुम्हारे हिस्से का वक़्त तो तुम्हे दे ही चुके हैं  और बची बातें, वो मैं रख लेता हूँ  अब ये तुम्हारे तो किसी काम की नहीं  __________ __________ ______ ____ __________ ख्वाहिश है के उसका हर एक सपना समेट लूँ  हर दिन ए...

मोमबत्ती की तरह जलती ये ज़िंदगी

मोमबत्ती की तरह जलती ये ज़िंदगी  हाथों में रेत सी फिसलती ये ज़िन्दगी  जल जाना इसकी फ़ितरत है  आंधी-तूफानों से तो शायद बच भी जाये  पर अपनी किस्मत से कैसे बचे ये ज़िन्दगी  इसे जलता देख भूल न करना के ये हमेशा ही रोशन रहेगी  एक दिन सिर्फ पिघला हुआ मोम होगा, और लो बुझ चुकी होगी  हाँ उस मोम से एक नयी शक्ल में, एक नए धागे से, एक नयी लो जलेगी  पर वो लो नयी होगी, होगी वो एक नयी ज़िन्दगी उस मोम के पिघल जाने से पहले के किस्से उस ज़िन्दगी के होंगे जिस धागे की लो से वो जलती रही ॥ 

मक़सद ढूंढते-ढूंढते

मक़सद ढूंढते- ढूंढते, बेमक़सद ना हो जाना  के पता चले के इस जद्दो-जहद में राहे-मंज़िल से ही मुड़ गए  वो हर घूँट हवा का, जो पीते रहे जीने के लिये  के साँसे चलती रही और जज़्बात बनते रहे  मैं चला तो था खुद की तलाश में  मिला हुज़ूम और भी, था जो इसी जुफ़तूजू में  हर सख्श मसरूफ था उसी जुनूँ में  पर न किसी को खबर थी के जाना कहाँ है  आखिर सब पहुँचे एक ही जगह  मिटटी में मिल गए, हुए ख़ाक सब अरमान  जैसे वो ख़्वाब, जो सुबह याद ही ना हो ॥

मैं ज़िन्दगी की दौड़ में आज भी मशगूल हूँ

मैं ज़िन्दगी की दौड़ में आज भी मशगूल हूँ  मैं आज भी हूँ बेफिक्र, थोड़ा आज भी मजबूर हूँ  ये नहीं की तेरी याद अब आती नहीं  तू दर्द बनके आज भी मेरे सीने में महफूज़ है  तेरे ना होने की खलिश आंसू बन बहने को बेताब हैं  ज़हन में तेरी तस्वीर धुंधला गयी है, पर क़ायम है  कभी चला जाता हूँ उस कमरे में तो हाथ फिराते ही चमक उठती है  और पहली बात मुझसे मेरी फिक्र की करती है सब सिखाया तूने, बस तेरे बिना जीना सीखाना भूल गयी  सर्दी की रात में तेरे दुलार की निमास हो  तेरी रोटियों की खुशबु और दाल की वो सीटियां  तेरे हाथ के खाने का स्वाद, तेरे घर सवारने का अंदाज़  वो बेशकीमती लम्हे गर सब लुटा कर भी लौटा सकूँ तो लौटा दूँ  तू टांक दे शर्ट का बटन, ये सोच कर आवाज़ दूँ  या शायद मेरी तंग पतलून का इलाज़ तेरे पास हो  अब किस बहाने से करूँ मैं तेरी आरज़ू  मैं क्यों रो रहा हूँ उन सुखों को, जो के अब ग़ैर ज़रूरी हैं  ये सब तो सीख चुका हूँ मैं, फिर भी तेरे बिना ज़िंदगी अधूरी है  मैं आज भी जश्न-...

वक़्त हर एक गुज़र गया

वक़्त हर एक गुज़र गया, मैं चट्टानों सा खड़ा रहा आंधी तूफानों के निशां हैं मुझपे भी टकराती हवाओं ने घिसा मुझे भी है मैंने भी देखें हैं ढहते हुए टीले  उखड़ते पेड़ और उजड़ते हुए घोसले  शायद देख उन्हें ही मैं डटा रहा     सर्दी, सावन, गर्मी, बारिश और पतझड़ सा  दर्द, खुमारी, इश्क़, बेकरारी और ग़म  आया और गया  वसंत जैसे ही खुशनुमा पल जल्द बीत गए  और सर्द रातें काटें ना कटीं  फिर एक साल मैंने ठिठोली की सर्द हवाओं से  बारिशों संग गीत गाये  और राग मिलाये पतझड़ से  तब से हर मौसम ख़ुशनुमा बन गया  मैं वसंत में खिल उठता हूँ आज भी  पर अब सर्दी में कर्राहता नहीं  ना बारिश से बचता हूँ और ना गर्मी से खीजता  मैंने हर मौसम से दोस्ती कर ली है  और सबने खूब प्यार भी दिया  ये जो चट्टानों सा मैं हूँ खड़ा  मेहनत कर कर इन्होंने ही मुझे है  गढ़ा ॥